जीवदया प्रतिपालक कुमारपाल राजा के जीवन की झांकियां
जन्म-वि.सं. 1149
दधिस्थली राज्य प्राप्त- वि.सं. 1199
12 व्रत लिए- वि.सं. 1216
स्वर्ग- वि.सं. 1230
राज्य भोग-30 वर्ष ऊपर
वंश- चालुक्य
कुमारपाल राजा की पालनी वर्षा ऋतु में जीवों की उत्पति होने के कारण पाटण से बाहर नहीं जाते थे। चातुर्मास में प्रतिदिन एकासना करते मात्र आठ द्रव्य ही वापरते थे। हर रोज 7 लाख घोड़े, 11 हजार हाथी व 80 हजार गायों को पानी छानकर पिलाते थे। जब भी घोड़े पर बैठते तब पूंजनी से साफ़(पूंज) कर बैठते थे। परिग्रह का परिमाण करने के बाद छूट- 11 लाख घोड़े, 11 हजार हाथी, 50 हजार रथ, 80 हजार गायें, 32 हजार मण तेल घी, सोने चांदी के 4 करोड़ सिक्के, 1 हजार तोला मणि-रत्न, घर दुकान जहाज आदि 500 रखने का व्रत लिया था। कुमारपाल राजा ने हेमचंद्राचार्य के उपदेश से समूचे पाटण में कत्लखाने बंद करवा दिए, इनके मुख से मारो ऐसा शब्द भी निकल जाता तो उस दिन आयम्बिल अथवा उपवास करते थे। एक सेठ ने जूं मार दी इसके दंड स्वरूप यूको विहार नामक जिनालय बनवाया था। प्रतिदिन 32 जिनालयों के दर्शन करके भोजन करते थे। शत्रुंजय के 7 संघ निकाले जिसमे प्रथम संघ में 9 लाख के 9 रत्नों से पूजा की।(पूजा के बाद 98 लाख धन दान दिया) कुमारपाल राजा ने मछीमारों की 1,80,000 जालों को जलाकर उनको अच्छा रोजगार दिया। हर रोज योग शास्त्र व वीतराग स्तोत्र का पाठ करने के बाद ही मंजन करते थे। अठारह देश में जीवदया का अद्वितीय पालन करवाया। सात बड़े ज्ञान मंदिर व 1440 मंदिर बनवाये। कुमारपाल राजा ने तारंगा में अद्वितीय जिन मंदिर बनाया। चातुर्मास में मन-वचन-काया से ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। मन से भी कभी ब्रह्मचर्य का भंग होता तो दूसरे दिन उपवास करते थे।
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