Javadsha - History Of Sheth Javadsha
श्री जावडशा
तेरहवाँ उद्धार श्री जावड शाह ने करवाया । विक्रम के प्रथम शताब्दी के समय संवत प्रवर्तक सम्राट विक्रमादित्य सामने भावड नाम का व्यापरी आया।
वो समय लश्कर के दृष्टि ए और मान - मोभा की दृष्टि ए अत्यंत उत्तम गणाते अश्व रत्नों की भावडे सम्राट को भेट दी।
ऐसे भेट देखकर राजा खुश होकर महुवा नगर और उनकी आसपास के 12 गांव भावड को इनाम के रूप में दिया।
भावड रातोरात छोटा सा राजा बन गया।
भावडे जब महुवा में आया तब उनकी पत्नि भावला ए एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया।
उनका नाम जावड रखा।
जावडे जोतजोत में जुवान में प्रवेश किया।
कामदेव समा उनका रूप था। बृहस्पति जैसी उनकी बुद्धि थी।
सिंह जैसे उनका सत्व था। जावड के लिये कन्या शोधने जावड के मामा गांव - गांव भमने लगे।
फिरते फिरते वो शत्रुंजय गिरिराज की तलेटी के घेटी गांव आये।
वहा उन्होंने शूर श्रेष्ठी के लाडली दीकरी सुशीला को देखा।
जैसा उनका नाम था , वैसा ही उनके गुण थे।
उनकी माहिती लेकर जावड के मामाने जावड के लिये कन्या का हाथ मांगा।
कन्या ए शरत मुकी की मेरे चार अर्थ गंभीर प्रश्नों का जवाब देंगे उनके साथ में लग्न करुंगी।
सुशीला को महुवा में स्वागतभेर लाया। उन्होंने धर्म ,अर्थ , काम और मोक्ष ऐसे चार प्रश्न पूछे।
जावडे अर्थपूर्ण उत्तर दिये। इससे उन्होंने सुशीला का दिल और शरत दोनों जीत लिये।
सूर्य की भी चढ़ती - पढ़ती होती है। ऐसे ही पुण्यशाली की भी होती है।
जावड जीवन में एकदा पड़ती आई।
अनार्य मलेच्छ सैन्य साथ युद्ध में सौराष्ट्र प्रदेश की हार हुई।
थोड़ेक परिवार को अनार्य देश में ले जाया गया।
उसमें जावड शाह का परिवार था।
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