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Kalikal Sarvagna HemChandracharya M.S. Bhag 3 | Jain Stuti Stavan




*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*

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*जन्म एवं परिवार*

गतांक से आगे...

चांगदेव की अवस्था पांच वर्ष की थी। उस समय एक दिन पाहिनी पुत्र को साथ लेकर धर्म स्थान पर गई। पाहिनी धर्माराधन में व्यस्त हो गई। बाल-सुलभ सफलता के कारण चांगदेव गुरु के आसन पर बैठ गया। अपने आसन पर स्थित बालक को देखकर गुरु बोले "पाहिनी तुम्हें अपना स्वप्न स्मृत है? इस बालक के मुख-मंडल को देखकर आभास होता है, तुम्हारे स्वप्न के अनुरूप यह तेरा कुलदीप जैन धर्म का प्रभावक होगा। अतः धर्म शासन रूपी नंदनवन में कल्पवृक्ष के समान शोभायमान इस नंदन को गुरु के चरणों में अर्पित कर दो।"

पाहिनी नम्र स्वर में बोली "गुरुदेव! पुत्र के पिता यहां नहीं है। इसकी मांग इसके पिता से करना उचित होगा।" देवचंद्रसूरि पाहिनी के इस उत्तर से मौन थे। वे बालक के पिता चाचिग की प्रकृति को अच्छी तरह जानते थे। देवचंद्रसूरि को मौन और गंभीर आकृति में देखकर पाहिनी ने पुनः सोचा कि गुरु के वचन अलंघनीय होते हैं। धर्म संघ के लिए इस अवसर पर पुत्र को अर्पित करना मेरे लिए श्रेयस्कर है। इस प्रकार का चिंतन और अपने पूर्व स्वप्न का स्मरण करती हुई, अपने पति द्वारा उत्पन्न होने वाली कठिन स्थिति का अनुभव करती हुई पाहिनी ने हिम्मत करके अपने अंगज को देवचंद्रसूरि के चरणों में चढ़ा दिया।

देवचंद्रसूरि सुयोग्य बालक चांगदेव को लेकर स्तम्भन तीर्थ पर गए। खम्भात में बालक को श्रावक उदयन का संरक्षण प्राप्त हुआ। गुजरात का अमात्य उदयन प्रभावशाली श्रावक था। जैन धर्म के प्रति उसकी अगाध आस्था थी।

बालक चांगदेव के पिता चाचिग को जब इस स्थिति की जानकारी हुई तब वह कुपित हुआ। खम्भात गया। देवचंद्रसूरि के पास पहुंचा तथा कर्कश स्वरों में बोलने लगा। उदयन ने मधुर और शांत स्वरों में समझा कर उसका कोप शांत किया। उसके बाद चाचिग की आज्ञा से देवचंद्रसूरि ने बालक चांगदेव को मुनि दीक्षा प्रदान की। मंत्री उदयन ने दीक्षा महोत्सव मनाया। बाल मुनि का नाम सोमचंद्र रखा गया।

प्रबंधकोश के अनुसार बालक चांगदेव मामा नेमिनाथ के साथ देवचंद्रसूरि की धर्मसभा में गया। प्रवचन सुना। प्रवचन के बाद श्रावक नेमिनाग ने खड़े होकर कहा। "मुनिवर्य! आपका प्रवचन सुनकर मेरा यह भानेज चांगदेव संसार से विरक्त हो गया है। यह मुनि दीक्षा स्वीकार करना चाहता है।" नेमिनाग ने बताया "प्रभु मेरा यह भानेज जब गर्भ में था तब मेरी बहन पाहिनी ने एक ऐसा आम्रवृक्ष देखा था जिसको स्थानांतरित करने पर फलवान बन गया।"

देरचंद्रसूरि ने श्रावक नेमिनाग की बात ध्यान पूर्वक सुनी और बोले "श्रेष्ठीवर्य! दीक्षा प्रदान करने के लिए पिता की सहमति आवश्यक है।"

बालक चांगदेव को लेकर श्रावक नेमिनाग भगिनी पाहिनी और बहनोई चाचिग के पास गया। भागिनेय की व्रत ग्रहण की भावना उनके सामने रखी। पिता इस बात के लिए सहमत नहीं हुआ। पिता का विरोध होने पर भी मामा की आज्ञा से चांगदेव देवचंद्रसूरि के साथ खम्भात चला गया। वहीं उसको मुनि दीक्षा प्रदान की गई।

*प्रबन्ध चिन्तामणि में उल्लिखित बालक चांगदेव के दीक्षा प्रसंग* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

संकलन - श्री पंकजी लोढ़ा

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