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Kalikal Sarvagna HemChandracharya M.S. Bhag 5 | Jain Stuti Stavan

श्रंखला क्रमांक -5


*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*


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*जन्म एवं परिवार*

गतांक से आगे...

देवचंद्रसूरि योग्य बालक को पाकर प्रसन्न हुए। वे उसे लेकर कर्णावती पहुंचे। वहां सुरक्षा की दृष्टि से बालक को उदयन मंत्री को सौंप दिया। मंत्री उदयन जैन धर्म के प्रति आस्थाशील था। श्रेष्ठी चाचिग जब घर आया तब बालक को घर पर न पाकर अत्यंत दुःखी हुआ। नाना प्रकार के विकल्प उसके मस्तिष्क में उभरे। पुत्र मिलन पर्यंत भोजन ग्रहण करने का परित्याग कर वह वहां से चला। कर्णावती पहुंचकर वह देवचंद्रसूरि के पास गया। गुरु के व्यवहार से रुष्ट चाचिग अच्छी तरह से वंदन किए बिना ही अकड़कर बैठ गया। देवचंद्रसूरि मधुर उपदेश से उसे समझाने लगे। मंत्र उदयन चाचिग के आगमन की सूचना पाकर वहां पहुंच गया। मंत्री उदयन वाक्-निपुण था। वह श्रेष्ठी चाचिग को आत्मीयभाव के साथ अपने घर ले गया। उसके भोजन की समुचित व्यवस्था की। भोजन के पश्चात् मंत्री ने चांगदेव को उसकी गोद में बैठा दिया। तथा तीन दुकूल और तीन लाख मुद्राएं भेंट कीं। चाचिग का हृदय देवचंद्रसूरि की मंगलवाणी को सुनकर पहले ही कुछ परिवर्तित हो गया था। उदयन मंत्री के शिष्ट और शालीन व्यवहार से वह अत्यधिक प्रभावित हुआ। उसने कहा "मंत्रीवर! यह तीन लाख की द्रव्य राशि आपकी उदारता को नहीं, कृपणता को प्रकट कर रही है। मेरे पुत्र का मूल्य इतना ही नहीं है, वह अमूल्य है, परंतु आपकी भक्ति भी मूल्यवान् है। आपके द्वारा प्रदत्त मुद्राओं की यह द्रव्य राशि मेरे लिए अस्पृश्य है। आपकी भक्ति के सामने नतमस्तक होकर मैं अपने पुत्र की भेंट आपको चढ़ाता हूं।"

उदयन मंत्री ने प्रमुदित होकर श्रेष्ठी चाचिग को गले से लगा लिया और साधुवाद देते हुए कहा "मुझे अर्पण करने से तुम्हारे पुत्र का वह विकास नहीं होगा जो विकास गुरु चरणों में सम्भाव्य है। गुरु की सन्निधि में तुम्हारा यह पुत्र गुरुपद को प्राप्त कर बालेंदु की तरह त्रिभुवन में पूज्य होगा।"

मंत्री उदयन के इस परामर्श को स्वीकार करता हुआ श्रेष्ठी चाचिग देवचंद्रसूरि के पास गया और उसने अपना पुत्र गुरु को समर्पित कर दिया। देवचंद्रसूरि ने उसे मुनि प्रव्रज्या प्रदान की। मंत्री उदयन के सहयोग से श्रेष्ठी चाचिग ने दीक्षा महोत्सव मनाया।

*चांगदेव के मुनि दीक्षा ग्रहण के समय व कालांतर में आचार्य पद प्राप्ति आदि* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

संकलन - श्री पंकजजी लोढ़ा 

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