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Shree Ratnakar Pachhishi Lyrics । श्री रत्नाकर पच्चीशी । Jain Stuti Lyrics

श्री रत्नाकर पच्चीशी 

Shree Ratnakar Pachisi Lyrics

Shree Ratnakar Pachhishi Lyrics । श्री रत्नाकर पच्चीशी । Jain Stuti Lyrics



Shree Ratnakar Pachisi Jain Stotra Lyrics In Hindi


मंदिर छो मुक्तितणा, मांगल्यक्रीडाना प्रभु,
ने इन्द्र नर ने देवना, सेवा करे तारी विभु ।
सर्वज्ञ छो स्वामी वळी, शिरदार अतिशय सर्वना,
घणुं जीव तुं, घणु जीव तुं, भंडार ज्ञान कळा तणा ... ||1||

त्रण जगतना आधारने, अवतार हे करुणातणा,
वळी वैद्य हे दुर्वार आ संसारना दुःखो तणा।
वीतराग वल्लभ विश्वना तुझ पास अरजी उच्चरु,
जाणो छतां पण कही अने, आ हृदय हुँ खाली करुं ... ||2||

शं बाळको माँ-बाप पासे, बाळक्रीडा नव करे ?
ने मुखमांथी जेम आवे, तेम शुं नव उच्चरे ?
तेमज तमारी पास तारक, आज भोळा भावथी,
जेवू बन्युं तेवू कहुं, तेमां कशुं खोटुं नथी ............. ||3||

मैं दान तो दीधुं नहि, ने शियळ पण पाल्यु नहि,
तपथी दमी काया नहि, शुभ भाव पण भाव्यो नहि,
ए चार भेदे धर्ममांथी, कांई पण प्रभु नव कर्यु, ।
म्हारुं भ्रमण भवसागरे, निष्फळ गयुं निष्फळ गयुं ...... ||4||

हुँ क्रोध अग्निथी बळ्यो, वळी लोभ सर्प डश्यो मने,
गळ्यो मानरूपी अजगरे, हुँ केम करी ध्यावें तने ?
मन मारुं मायाजाळमां, मोहन ! महा मुंझाय छे,
चडी चार चोरो हाथमां, चेतन घणो चगदाय छे ...... ||5||

मैं आ भवे के पर भवे पण, हित कांइ कर्यु नहि,
तेथी करी संसारमा सुख, अल्प पण पाम्यो नहि,
जन्मो अमारा जिनजी, भव पूर्ण करवाने थया,
आवेल बाजी हाथमां, अज्ञानथी हारी गया ............ ||6||

अमृत झरे तुज मुखरूपी, चंद्रथी तो पण प्रभु,
भिजाय नहि मुज मन अरे रे, शु करूँ हु तो विभु ।
पत्थर थकी पण कठिन मारूं, मन खरे क्यांथी द्रवे,
मरकट समा आ मन थकी, हं तो प्रभु हार्यों हवे ....... ||7||

भमता महा भवसागरे, पाम्यो पसाये आपना,
जे ज्ञान दर्शन चरणरूपी, रत्नत्रय दुष्कर घणां,
ते पण गयां प्रमादना वशथी प्रभु कहुँ छु खरु,
कोनी कने किरतार आ पोकार हुँ जइने करूं ? ....... ||8||

ठगवा विभु आ विश्वने, वैराग्यना रंगो धर्या ,
ने धर्मनो उपदेश रंजन, लोकने करवा कर्या ।
विद्या भण्यो हुँ वाद माटे, केटली कथनी कहुं ?
साधु थइने बहारथी, दांभिक अंदरथी रहुँ ............ ।।9।।

मैं मुखने मेलुं कर्यु, दोषो पराया गाइने,
ने नेत्रने निंदित कर्या, परनारीमां लपटाइने ।
वळी चित्तने दोषित कर्यु , चिंति नठारं परतणुं,
हे नाथ ! मारुं शुं थशे, चालाक थइ चुक्यो घणुं .... ||10||

करे काळजानी कतल पीडा, कामनी बिहामणी,
ए विषयमां बनी अंध हुं, विडंबना पाम्यो घणी ।
ते पण प्रकाश्युं आज लावी, लाज आप तणी कने,
जाणो सहुँ तेथी कहुँ, कर माफ मारा वांकने ......... ||11||

नवकार मंत्र विनाश कीधो, अन्य मंत्रो जाणीने,
कुशास्त्रनां वाक्यो वडे , हणी आगमोनी वाणीने ।
कुदेवनी संगत थकी , कर्मो नकामा आचर्या,
मतिभ्रम थकी रत्नो गुमावी , काचना कटका ग्रह्या ..... ||12||

आवेल दृष्टिमार्गमां, मूकी महावीर आपने,
मैं मूढधीए हृदयमां, ध्याया मदनना चापने ।
नेत्रबाणो ने पयोधर, नाभिने सुंदर कटी,
शणगार सुंदरीओ तणा, छटकेल थई जोया अति .... ||13||

मृगनयनी सम नारी तणां, मुखचन्द्र नीरखवा वळी,
मुज मन विषे जे रंग लाग्यो, अल्प पण गूढो अति ।
ते श्रुतरूप समुद्रमां, धोया छतां जातो नथी,
तेनुं कहो कारण तमे, बचु केम हूँ आ पापथी ........ ||14||

सुंदर नथी आ शरीर के, समुदाय गुण तणो नथी,
उत्तम विलास कलातणी, देदीप्यमान प्रभा नथी ।
प्रभुता नथी तो पण प्रभु, अभिमानथी अक्कड करूं,
चोपाट चार गति तणी, संसारमा खेल्यां करुं ........ ||15||

आयुष्य घटतु जाय तो पण, पापबुद्धि नव घटे,
आशा जीवननी जाय पण, विषयाभिलाषा नव मटे ।
औषध विषे करुं यत्न पण, हुं धर्मने तो नव गणुं,
बनी मोहमां मस्तान हूँ, पाया विनानुं घर चणुं ....... ||16।।

आत्मा नथी परभव नथी, वळी पुण्य पाप कशुं नथी,
मिथ्यात्वीनी कटु वाणी में, धरी कान पीधी स्वादथी ।
रवि सम हता ज्ञाने करी, प्रभु आपश्री तो पण अरे !
वो लई कुवे पड्यो धिक्कार छे मुजने खरे ........ ||17||

मैं चित्तथी नहि देवनी, के पात्रनी पूजा चहीं.
ने श्रावकों के साधुओंनो, धर्म पण पाळ्यो नहीं ।
पाम्यो प्रभु ! नरभव छतां, रणमा रड्या जेंवु थयुं 
धोबी तना कुता समुं, मम जीवन सहुँ एळे गयु ...... ||18||

हुं कामधेनुं कल्पतरूं, चिन्तामणिना प्यारमां,
खोटा छतां झंख्यो घणुं, बनी लुब्ध आ संसारमा ।
जे प्रगट सुख देनार त्हारो, धर्म तो सेव्यो नहि,
मुज मूर्ख भावोने निहाळी, नाथ कर करुणा कई ..... ||19||

मैं भोग सारा चिंतव्या, ते रोग सम चिंत्या नहीं,
आगमन इच्छ्युं धनतणुं, पण मृत्युने प्रीछ्युं नहीं ।
नहि चिंतव्युं मैं नरक कारागार समी छे नारीओ,
मधुबिंदुनी आशा महीं, भयमात्र हुँ भूली गयो ........ ||20||

हं शुद्ध आचारो वडे, साधु हृदयमां नव रह्यो,
करी काम पर उपकारनां, यश पण उपार्जन नव कर्यो,
वळी तीर्थना उद्धार आदि, कोई कार्यो नव कर्या,
फोगट अरे आ लक्ष चोराशी तणा फेरा फर्या ......... ||21||

गुरुवाणीमां वैराग्य केरो, रंग लाग्यो नहि मने,
दुर्जनतणा वाक्यो महिं, शांति मळे क्याथी मने ?
तरु केम हुँ संसार आ, अध्यात्म तो छे नहि जरी,
तूटेल तळियानो घडो जळथी, भराये केम करी ...... ||22||

मैं परभवे नथी पुण्य कीधुं, ने नथी करतो हजी,
तो आवता भवमां कहो, क्याथी थशे हे नाथजी ?
भूत भावीने सांप्रत त्रणे, भव नाथ हुं हारी गयो,
स्वामी त्रिशंकु जेम हुं, आकाशमां लटकी रह्यो ....... 23।

अथवा नकामुं आप पासे, नाथ ! शुं बकवुं घणुं ?
हे देवताना पूज्य ! आ चरित्र मुज पोता तणुं ।
जाणो स्वरूप त्रण लोकनुं, तो माहरु शुं मात्र आ ?
ज्यां क्रोडनो हिसाब नहि, त्यां पाइनी तो वात क्यां ? ||24||

त्हाराथी न समर्थ अन्य दीननो, उद्धारनारो प्रभु,
म्हाराथी नहि अन्य पात्र जगमां, जोतां जडे हे विभु ।
मुक्ति मंगळ स्थान तो य मुजने, इच्छा न लक्ष्मी तणी,
आपो सम्यगरत्न श्याम जीवने, तो तृप्ति थाये घणी .. ||25||

Jain Stotra - Shree Ratnakar Pachisi Jain Stotra Lyrics In Hindi,
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